Wednesday, November 28, 2012

दिल्ली

तू ही दिल है, 
तू  दिल्लगी, 
अब दिल की लगी, हूँ  
करने आया! 

तेरा बन के, या 
बन के पराया,
तेरे साये में, 
बिताने आया, अपनी 
हर धूप -छाया !

अपनो को, 
करके पराया, 
किसमत को अपनी,
तराजू पे रख के, 
हे दिल्ली! मैं 
तुझसे 
मिलने आया!

Wednesday, November 7, 2012

समर्पण

आज ये 
फैसला 
सरे आम 
करता  हूँ, 
अपने खून का 
कतरा कतरा 
तेरे 
नाम करता हूँ !

जीऊँ तो 
तेरे लिए, 
ना बचे दूसरा 
उद्द्येश्य कोई, 
तेरी आँचल में, 
दम तोड़ने की 
प्रतीक्षा 
सुबह-शाम 
करता हूँ !